कुंभलगढ़ के बादल-महल में एक झरोखे पर बैठकर बादलों को करीब से गुज़रते देखना आज भी मेरी यादों का एक खूबसूरत हिस्सा है। अपने नाम की तरह ही बादल महल सच में बादलों में बसे हुए एक महल जैसा लगा था मुझे।

मैं खुशकिस्मत और शुक्रगुजार हूं कि मुझे ऐसे माता-पिता मिले जिनके साथ जगह-जगह घूमते हुए मैंने बचपन की बहुत सी यादें इकट्ठा कीं। जैसे सालों पहले मेरे माता-पिता मुझे कुंभलगढ़ घुमाने लाये थे वैसे ही इस बार मैंने अपने बच्चों को वहां ले जाने की सोची।
कुंभलगढ़ किले का निर्माण राणा कुंभा ने 1458 में करवाया था। मेवाड़ की पथरीली पहाड़ियों में बसा यह किला, चित्तौड़गढ़ के किले के बाद, राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा किला है। यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) घोषित किए गए राजस्थान के 6 पहाड़ी किलों में से एक है।
19 वीं शताब्दी में महाराणा फतेह सिंह ने इस किले के निर्माण में कुछ बदलाव किये।

इस किले को इस प्रकार बनाया गया था कि ये किसी भी तरह के हमले को झेल पाने की क्षमता रखता हो।
कुंभलगढ़ मेवाड़ की प्रसिद्ध राजा महाराणा प्रताप की जन्मभूमि है। उदयपुर के संस्थापक महाराणा उदय सिंह को भी अपने बचपन में कुंभलगढ़ में शरण लेनी पड़ी थी जब चित्तौड़गढ़ की पन्ना धाई ने उनकी जान बचाई थी।
उदयपुर एक बेहद खूबसूरत जगह है जिसका आकर्षण पर्यटकों को निरंतर अपनी तरफ खींचता है. एक रोमांटिक जगह होने के साथ साथ सुन्दर इमारतों और झीलों वाला ये एक ऐतिहासिक शहर भी है. उदयपुर के बारे और पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

कुंभलगढ़ किले को अभेद्य माना जाता था। इतिहास में सिर्फ एक बार इस किले हो हार का सामना करना पड़ा था जब मुगलों की सारी सेना ने मिलकर कुंभलगढ़ किले पर हमला किया और पीने के पानी की कमी की वजह से आत्मसमर्पण करना पड़ा।
भारत की महान दीवार
अगर चीन की 22000 किलोमीटर लंबी महान दीवार से तुलना की जाए तो कुंभलगढ़ की 36 किलोमीटर लंबी दीवार कुछ ज्यादा बड़ी नहीं लगती पर असल में यह दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार है। यह भारत की महान दीवार के नाम से प्रसिद्ध है।
कुंभलगढ़ की विशाल दीवार की चौड़ाई इतनी है कि इसमें 8 घोड़ों एक साथ बराबर खड़े हो कर गुज़र सकते हैं।
यह किला अधिकतर वीरान और खंडहर जैसा है। यह चित्तौड़गढ़ और जयपुर के किलों की तरह आलीशान या खूबसूरत नहीं है। पर यहां की महान दीवार पर्यटकों को इस किले की तरफ खींच लाती है।
जयपुर, भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान की राजधानी है। यह शहर प्राचीन संस्कृति और आधुनिकता का मिलाजुला खूबसूरत और मनमोहक स्वरूप पेश करता है। गुलाबी नगरी जयपुर और वहां घूमने लायक जगहों के बारे में यहाँ पढ़ें।
सात विशाल द्वार

कुंभलगढ़ के मुख्य किले में आप सात बड़े द्वारों (या पोल) में से गुजरकर पहुंच सकते हैं। जैसे-जैसे आप मुख्य किले की तरफ बढ़ते हैं ,आगे आने वाले द्वार पहले से छोटे होते जाते हैं। इन द्वारों को इस प्रकार से बनाया गया था ताकि एक सीमा के बाद हाथी और घोड़े किले के अंदर प्रवेश ना कर सकें।
कुंभलगढ़ का बली मंदिर
ऐसा माना जाता है कि जब राणा कुंभा महल को मजबूत बनाने की कोशिश में लगे थे तब इसकी दीवार बार- बार ढह जाती थी। तब एक साधु ने ये सुझाव दिया कि दुर्गा मां के सामने किसी राजपूत का बलिदान देने से महल को मजबूत बनाने का कार्य सुनिश्चित होगा।

इसके लिए एक राजपूत सैनिक स्वयं आगे आया। (कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि वह साधु ही स्वयं बलिदान के लिए आगे आए थे) विधि अनुसार उसका सर धड़ से अलग कर दिया गया और जिस जगह पर जाकर उसका सर गिरा वहां पर एक वेदी मंदिर का निर्माण किया गया।
एक ऊंची जगह पर बनाए गए इस वेदी मंदिर में 36 अष्टकोण आकार के स्तंभ हैं।
किले के परिसर में 364 मंदिर हैं।

जैन राजा संप्रति, जो कि सम्राट अशोक के पौत्र थे, की जमीन पर इस किले का निर्माण हुआ। शायद इसलिए ही किले के अंदर के 364 मंदिरों में से 300 जैन मंदिर हैं।
राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में पंद्रहवीं शताब्दी का शानदार रणकपुर मंदिर, इस युग के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है। बेहद खूबसूरत वास्तुशिल्प वाले इस मंदिर के बारे में यहाँ पढ़ें।
किले के अंदर

राणा कुंभा महल

राणा कुंभा महल पर राजपूत शैली का प्रभाव साफ दिखाई पड़ता है। यहां का कमरा बहुत ही छोटा, अंधेरे में घिरा हुआ और साधारण सा लगता है जिससे ऐसा प्रतीत होता है जैसे इसे केवल किसी को शरण देने के लिए बनाया गया था, किसी आरामदायक जगह के रूप में नहीं। पाघरा पोल से होते हुए पर्यटक राणा कुंभा महल तक पहुंच सकते हैं।
बादल महल

बादल महल का निर्माण राणा फतेह सिंह द्वारा करवाया गया जिन्होंने 1885 से 1930 तक राज किया। यह दो मंजिला महल है और यहां एक बरामदा जनाना महल और मर्दाना महल को अलग करता है। यहां की दीवारों को 19वीं शताब्दी के चित्रों से सजाया गया है।

यहां एक संकरी सी सीढ़ी है जिससे किले की छत पर जाया जा सकता है।
आईटनरेरी (Itinerary)
अगर आप जोधपुर और जयपुर की यात्रा कर रहे हैं तो रणकपुर मंदिर और कुंभलगढ़ किला देखने लायक स्थान हैं।
हम सुबह-सुबह ट्रेन से उदयपुर पहुंचे। वहां से हमने प्री-बुक्ड सेल्फ-ड्राइव ज़ूम कार (Pre-booked self-drive Zoom car) ली।
उदयपुर शहर के मुख्य रेलवे स्टेशन के अलावा यहां एक दूसरा रेलवे स्टेशन भी है- राणा प्रताप नगर रेलवे स्टेशन। यहां से आप ज़ूम कार ले सकते हैं।
दिल्ली से एक वीकेंड गेटअवे के रूप में हमारी आईटनरेरी कुछ इस प्रकार थी-
उदयपुर- एकलिंग जी मंदिर- नाथद्वारा- रणकपुर- कुंभलगढ़ लेपर्ड सफारी- कुंभलगढ़- हल्दीघाटी- महाराणा प्रताप म्यूजियम- उदयपुर
हम दो रात रणकपुर में और एक रात कुंभलगढ़ में ठहरे।
उदयपुर के आसपास घूमने लायक बहुत से ऐसे स्थान हैं जिनके बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे। इनके बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
कुंभलगढ़ कैसे पहुंचें?

कुंभलगढ़ किले से 68 किलोमीटर की दूरी पर स्थित फालना सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है। इस दूरी को पूरा करने में तकरीबन 2 घंटे का समय लगता है।
स्टेशन पर टैक्सी उपलब्ध है और एक प्राइवेट टैक्सी के लिए आपको तकरीबन 1800 रुपए खर्च करने पड़ सकते हैं।
सबसे नजदीकी एयरपोर्ट उदयपुर में है जो कि तकरीबन 115 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और जोधपुर एयरपोर्ट यहां से 180 किलोमीटर दूर है।
कुंभलगढ़ के लिए अजमेर, जोधपुर, उदयपुर और पुष्कर जैसे शहरों से बस सुविधा उपलब्ध है।
कुंभलगढ़ कब जाएं?
कुंभलगढ़ घूमने के लिए सर्दियां यानी अक्टूबर से मध्य मार्च का समय सबसे बढ़िया है। राजस्थान में सर्दियों में मौसम सुहावना रहता है।
गर्मियों के मौसम में कुंभलगढ़ बहुत गर्म और शुष्क रहता है। इस मौसम में अधिकतम तापमान 42 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है इसलिए इस मौसम में यहां ना जाना ही बेहतर है।
हम कुंभलगढ़ मार्च के अंत में गए थे जब सुबह और शाम के दौरान मौसम सुहावना होता था पर दिन के वक्त गर्मी काफी बढ़ जाती थी।
मॉनसून में कुंभलगढ़
हालांकि कुंभलगढ़ में बारिश बहुत कम ही होती है पर मानसून के दौरान तापमान में कुछ कमी हो जाती है।
किले का समय और प्रवेश शुल्क
पर्यटकों के लिए किला सुबह 9:00 बजे से लेकर शाम 6:00 बजे तक खुला रहता है।
भारतीय, SAARC देशों और BIMSTEC देशों के पर्यटकों के लिए प्रवेश शुल्क है ₹40 और बाकी अन्य पर्यटकों के लिए ₹600
लाइट और साउंड शो के लिए पर्यटकों को अलग से टिकट खरीदनी पड़ती है जिसकी कीमत है 100 रुपए । यह शो सिर्फ हिंदी भाषा में प्रस्तुत किया जाता है।
पूरे किले को देखने में तकरीबन डेढ़ से 2 घंटे का समय लग सकता है।
लाइट एंड साउंड शो शाम को तकरीबन 7:00 बजे या सूर्यास्त के समय शुरू होता है। अंधेरा होने से पहले यह शो शुरू नहीं होता।
लाइट एंड साउंड शो में विभिन्न प्रकार के लाइट इफेक्ट से कुंभलगढ़ किले पर रोशनी डाली जाती है जिसे संगीत और कुंभलगढ़ के इतिहास की जानकारी के साथ पेश किया जाता है।
राम पोल के नज़दीक कार और बस पार्किंग की सुविधा उपलब्ध है। लाइट एंड साउंड शो के लिए टिकटें भी यहां से खरीदी जा सकती हैं।

किले की तरफ जाने वाला रास्ता काफी संकरा है और वहां पार्किंग की जगह की कमी है। इस वजह से कभी-कभी यहाँ ट्रैफिक जाम हो जाता है खासकर लाइट एंड साउंड शो के बाद।
कुंभलगढ़ में कहाँ ठहरें?
हम लोग कुंभलगढ़ सफारी कैंप में रुके जहां पर बच्चों के लिए बहुत सारी एक्टिविटीज थी। पर हम इस जगह और यहाँ के खाने से ज्यादा खुश नहीं थे। ब्रेकफास्ट के बिना कमरे का किराया ₹5000 था।
पहाड़ों से घिरे महुआ बाग़ में खूबसूरत गार्डन, रेस्तरां, पूल, फ्री पार्किंग और वाईफाई उपलब्ध है. इसके रिव्यु पढ़ने के लिए और बुकिंग के लिए यहाँ क्लिक करें।
Ramada Resort by Wyndham कुम्भलगढ़ किले के नज़दीक स्थित एक बहुत सुन्दर रिसोर्ट है जहाँ ट्रेवलर्स को घूमने के लिए बहुत सी सुविधाएं और मौके मिलते हैं. इस प्रॉपर्टी में फ्री पार्किंग, फ्री ब्रेकफास्ट, पूल और बिज़नेस सेंटर जैसी कई सुविधाएं उपलब्ध हैं. इसके रिव्यु पढ़ने के लिए और बुकिंग के लिए यहाँ क्लिक करें।
कंज हवेली रिसोर्ट कुम्भलगढ़ पुराने ट्रेडिशनल स्टाइल में बनी ठहरने के लिए काफी आरामदायक जगह है. यहाँ फ्री पार्किंग, फ्री ब्रेकफास्ट, पूल जैसी कई सुविधाएं उपलब्ध हैं. इसके रिव्यु पढ़ने के लिए और बुकिंग के लिए यहाँ क्लिक करें।
ट्रैवल टिप्स

- पूरा किला घूमने में डेढ़ से 2 घंटे का समय लग सकता है इसलिए आरामदायक जूते पहनें और अपने साथ पानी जरूर रखें खासकर अगर आपके साथ छोटे बच्चे भी हैं।
- किले की चढ़ाई थोड़ी मुश्किल है पर बच्चे आराम से चढ़ सकते हैं। बुजुर्गों और घुटनों की समस्या से पीड़ित लोगों के लिए यह चढ़ाई मुश्किल और थकाने वाली हो सकती है।
- किले के परिसर के अंदर निःशुल्क शौचालय (Toilet) की सुविधा उपलब्ध है।
- यहां पर कुछ दुकानें भी हैं जहां से खाने पीने की चीजें खरीदी जा सकती हैं।
बढ़िया रहेगा यदि आप अपने लिए कोई गाइड साथ ले लें जिससे कि आपको इस जगह की महत्ता और इतिहास के बारे में अधिक जानकारी मिल सकेगी। पर इसके साथ एक छोटी सी चेतावनी भी ध्यान में रखें कि ये ज़रूरी नहीं कि गेट पर मिलने वाले हर गाइड को यहां के बारे में ज़्यादा जानकारी हो। कम से कम जिस गाइड को हमने साथ लिया था उसे कुछ ख़ास जानकारी नहीं थी।
जैसा कि भारत के ज्यादातर पर्यटन स्थलों पर अक्सर होता है, कई गरीब माता-पिता अपने बच्चों को ऐसी जगहों पर भीख मांगने के लिए भेज देते हैं। यहां बस इतना फर्क था कि यहां पर घूमने वाले बच्चे खुद को टूर गाइड की तरह पेश कर रहे थे। हम किले से वापस आते हुए इन बच्चों से मिले इसलिए कह नहीं सकते कि यह बच्चे असल में इस जगह के बारे में कितना जानते होंगे।
इस बदलाव के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे? क्या हमें ऐसे बच्चों को टूर गाइड की तरह काम में लेना चाहिए? अपनी राय हमें कॉमेंट्स में ज़रूर बतायें।
frequently asked questions
कुम्भलगढ़ कहाँ स्थित है?
कुम्भलगढ़ भारत के राजस्थान राज्य के राजसमंद ज़िले में, उदयपुर के पास स्थित है.
कुम्भलगढ़ किस लिए प्रसिद्ध है?
कुम्भलगढ़ 36 किमी लंबी किले की दीवार के लिए प्रसिद्ध है जो दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार है। यह कुम्भलगढ़ किले के लिए भी प्रसिद्ध है, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल राजस्थान के पहाड़ी किलों में से एक है।



This post was originally written in English by Richa Deo and can be read by clicking here. This post has been translated in Hindi by Amandeep Kaur.
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